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२ अप्रैल, १९७२
माताजीकी कुछ शिष्योंसे बातचीत हुई थी, उस बातचीतके कुछ अंश :
मानवजातिने शताव्दियों और सहस्राब्दियोंतक इस क्षणकी प्रतीक्षा की है । वह आ गया है । पर वह है कठिन ।
मैं तुमसे यह नहीं कहती कि हम यहां, धरतीपर आराम करने या मौज करनेके लिये हैं, अभी उसका समय नहीं है । हम यहां.. नयी सृष्टिका मार्ग तैयार करनेके लिये हैं ।
शरीरमें कुछ कठिनाई है इसलिये, खेद है, मैं सक्रिय नहीं हो सकती । इसका कारण यह नहीं है कि मै बूटी हू -- मैं बूढी नहीं हू । मै तुममेंसे
अधिकतर लोगोंसे ज्यादा जवान हू । अगर मै यहां निष्क्रिय हू तो इसका कारण यह है कि शरीरने अपने-आपको निश्चित रूपसे रूपांतरकी तैयारीके लिये दे दिया है । लेकिन चेतना स्पष्ट है और हम यहां कामके लिये हैं - आराम और मौज पीछे आयेंगे । चलो, हम अपना काम करें ।
मैंने तुम्हें यही कहनेके लिये बुलाया है । तुम जो ले सकते हा लो, जो कर सकते हो करो । मेरी सहायता तुम्हारे साथ रहेगी । सभी सच्चे प्रयासोंको अधिक-सें-अधिक सहायता दी जायगी ।
यह वीर बननेकी घड़ी है ।
वीरता वह नहीं है जो लोग कहते है । यह पूरी तरह एक होनेमें है - और जो पूरी सचाईसे वीर होनेका निश्चय करेंगे, उन्हें भगवान्की सहायता हमेशा मिलेगी । बस ।
तुम इस समय यहां, यानी, धरतीपर इसलिये हों क्योंकि एक समय तुमने यह चुनाव किया था -- अब तुम्हें उसकी याद नट्टी है, पर मै जानती हू - इसी कारण तुम यहां हो । हां, तुम्हें इस कार्यकी ऊचाईतक उठना चाहिये, तुम्हें प्रयास करना चाहिये, तुम्हें सभी कमजोरियों और सीमाओंको जीतना चाहिये. और सबसे बढ़कर तुम्हें अपने अहंकारसे कहना चाहिये. ''तुम्हारा समय बीत गया ।'' हम एक ऐसी जाति चाहते है जिसमें अहंकार न हो, जिसमें अहंकारकी जगह भागवत चेतना हो । हम यहीं चाहते है पुख भागवत चेतना जो जातिको विकसित होने और अतिमानस सत्ताको जन्म लेने दे।
अगर तुम यह समझते हों कि मै यहां इसलिये हू क्योंकि मै बद्ध हू तो यह सच नहीं है । मै बद्ध नहीं हू । मैं यहां इसलिये हूं क्योंकि मेरा शरीर रूपांतरके पहले प्रयासके लिये अर्पित है । श्रीअरविन्दने मुझसे यह कहा था । हां, तो मै उसे कर रही हू । मैं नहीं चाहती कि कोई और मेरे लिये यह करे... क्योंकि यह बहुत, बहुत सुखकर नहीं है । लेकिन मैं परिणामोंके लिये खुशीसे कर रही हू । इससे हर एक त्याग उठा सकेगा । मैं केवल एक चीज मांगती हू. अहंकी बात न सुनो ।
अगर तुम्हारे
हृदयोंसे एक सच्ची
''हां'' निकलती है तो तुम
मुझे पूरी तरह संतुष्ट करोगे । मुझे शब्दोंकी जरूरत
नहीं है,
मै चाहती हूं तुम्हारे हृदयोंकी सच्ची निष्ठा और लगाव । बस,
इतना ही । २७६ |